बायपास वसा संपूरक
आमतौर पर, ताजे ब्यांत और अधिक दूध देने वाले पशुओं के आहार में उर्जा की कमी पाई जाती है। पशु के कम खाने एवं दूध उत्पादन बढने से इस उर्जा का अभाव और अधिक बढ़ जाता है। ऐसा देखा गया है, कि ब्यांत के बाद पशुओं में 80 से 100 किलो के आसपास शरीर का वजन कम होना आम बात है। ऐसे कमजोर पशु तब तक गर्मी में नहीं आ पाते हैं जब तक की वो अपना ब्यांत के बाद कम हुआ शारीरिक वजन पूरा या आंशिक रूप से वापस नहीं पा लेते । इस वजह से पशुओं में गाभिन होने में देरी होती है और दो ब्यांतों के बीच का अन्तराल लंबा हो जाता है। इसके अतिरिक्त, पशु इस अवधि के दौरान दूध भी कम देते हैं, तथा पूरे ब्यांतकाल का दुग्ध उत्पादन भी कम हो जाता है। ज्यादा दुग्ध उत्पादन होने पर, किसान अपने पशुओं को आमतौर पर तेल या घी पिलाते हैं। परंतु यह किफायती नहीं है, और रूमेन में रेशे की पाचाकता भी कम हो जाती है।
अधिक दूध देने वाले, गाभिन एवं नए ब्याए पशुओं को बायपास फैट खिलाने से ऊर्जा की कमी को कम किया जा सकता है। और इससे दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता में सुधार लाने में मदद मिलती है। बायपास फैट का उपयोग दूध देने वाले पशुओं के आहार में प्रजनन से 10 दिन पहले और 90 दिनों बाद तक किया जा सकता है। यह दुधारू पशुओं के आहार में 15 से 20 ग्राम प्रति किलो दूध उत्पादन अथवा प्रतिदिन 100 से 150 ग्राम प्रति पशु के हिसाब से शामिल किया जा सकता है। बाईपास फैट खिलाने से फाइबर (रेशा) पाचन में बाधा नहीं होती और घी / तेल पिलाने के बजाय यह ज्यादा फायदेमंद होता है।
बायपास फैट खिलाने से होने वाले लाभ:
- दूध उत्पादन बढ़ाता है तथा उसे बनाए रखता है।
- ब्यांत के बाद प्रजनन क्षमता बढ़ाता है।
- उपापचय सम्बंधित बीमारियाँ जैसे कीटोसिस या दुग्ध ज्वर होने की संभावना कम हो जाती है।
- पशुओं की उत्पादकता एवं उत्पादक जीवन में वृद्धि होती है।
एनडीडीबी ने विभिन्न तरीकों का उपयोग कर तथा क्षेत्र परीक्षणों की मदद से बाईपास फैट उत्पादन की प्रक्रिया का मानकीकरण किया है।