जलवायु अनुकूल डेरी उद्योग
वर्तमान में, वैश्विक जलवायु परिवर्तन को मानव सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौती के रूप में सामना कर रहा है। यह हमारे भूमंडलीय पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन द्वारा भावी पीढ़ियों के जीवन के लिए खतरा साबित हो रहा है । जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार 21वीं शताब्दी के अंत तक वैश्विक सतह का तापमान 1850 से 1900 के सापेक्ष 1.5 से 2.0 0सी से अधिक होने की संभावना है। मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) के निरंतर उत्सर्जन से गर्मी और बढ़ेगी तथा इससे जलवायु प्रणाली के सभी घटकों में दीर्घकालिक परिवर्तन होंगे, जिससे लोगों और पारिस्थितिक तंत्र के लिए गंभीर, व्यापक और अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ जाएगी ।
विश्व भर में, पशुधन उत्पादन से 14.5 प्रतिशत वैश्विक मानव निर्मित जीएचजी का उत्सर्जन होता है। विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में, 70 प्रतिशत से अधिक कृषि के लिए मीठे पानी का उपयोग किया जाता है (जिसमें फसल और पशुधन उत्पादन भी शामिल है)। इसलिए, वैश्विक पशुधन क्षेत्र की जलवायु परिवर्तन पर इसके प्रभाव को कम करने की सबसे अधिक चुनौती है।
एनडीडीबी ने डेरी के पर्यावरण प्रभाव को कम करने के लिए बेहतर आहार (आहार संतुलन, संपूर्ण मिश्रित आहार) और खाद प्रबंधन (बायोगैस) जैसी विभिन्न पहल की हैं । इन पहलों से निश्चित रूप से भारत में डेरी स्थिरता में सुधार करने में मदद मिलेगी ।