पशु प्रजनन

दुधारू पशुओं के प्रजनन का प्रबंधन किसी छोटे या बड़े डेरी उद्यम की सफलता का महत्‍वपूर्ण अंग है । सफल प्रजनन प्रबंधन कई महत्‍वपूर्ण एवं सुसंगत घटनाओं का परिणाम है । बछियों की शीघ्र लैंगिक परिपक्‍वता, पशुओं के शीघ्र गर्मी में आने के लक्षण का प्रकट होना, किसानों द्वारा गर्मी की पहचान, एसओपी (मानक कार्य प्रणाली) का पालन करते हुए रोगमुक्‍त वीर्य द्वारा समय से कृत्रिम गर्भाधान कराना, पूर्ण अवधि तक गर्भावस्‍था की देख-रेख, सामान्‍य प्रसव (ब्‍याने) से बच्‍चा सामान्‍य एवं स्‍वस्‍थ रहता है, ब्‍याने के बाद ऋतु चक्र का फिर से शुरू होना इत्‍यादि कुछ महत्‍वपूर्ण घटनाएं हैं । इस चक्र में किसी भी अवस्‍था पर रूकावट होने से पशु प्रजनन प्रभावित होता है तथा जिससे दूध उत्‍पादन पर प्रभाव पड़ता है।

प्रजनन संबंधित जैव तकनीकों के विकास के क्रम में विभिन्‍न तकनीकें सामने आईं जैसे – भ्रूण प्रत्‍यारोपण, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, सेक्‍स सीमन इत्‍यादि। दूध उत्‍पादन में वृद्धि के लिए इन तकनीकों को अपनाने की आवश्‍यकता है । हालांकि, व्यापक प्रसार से पहले, ऐसी कई तकनीकों को प्रायोगिक अध्ययन, मानकीकरण और अनुकूलन की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें हमारे किसानों के लिए कुशल और किफायती बनाया जा सके। एनडीडीबी ने अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी द्वारा स्थापित 4 मेगा वीर्य स्टेशनों के माध्यम से उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले सांडों के रोग मुक्त गुणवत्ता वाले वीर्य खुराक के उत्पादन को अनुकूलित किया है। एनडीडीबी ने 1987 में देश में पहली भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी परियोजना की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एनडीडीबी ने आईवीएफ के माध्यम से गोजातीय भ्रूण के उत्पादन को मानकीकृत करने और प्रौद्योगिकी को भारतीय किसान के लिए किफायती बनाने हेतु एवं प्रशिक्षित जनशक्ति का निर्माण के लिए एक अत्याधुनिक ओपीयू-आईवीईपी सुविधा भी स्थापित की है।

अन्‍तत:, प्रजनन से संबंधित सभी प्रयास पशुओं के बेहतर पोषण के लिए सहायक होने चाहिए क्‍योंकि संतुलित आहार सफल प्रजनन प्रबंधन के लिए पहली शर्त है।